मोहाली 30 अप्रैल ( गीता ) । दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान चंडीगढ़ द्वारा भारतीय विक्रम संवत् 2081 (भारतीय नव वर्ष) के उपलक्ष्य में श्री प्राचीन शिव मंदिर, फेज-1 मोहाली में एक भव्य आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का आगाज करते हुए नूरमहल (पंजाब) से विशेष रूप से उपस्थित संस्थान के संचालक एवं संस्थापक दिव्य गुरु श्री आशुतोष महाराज जी की परम शिष्या साध्वी त्रिपदा भारती जी ने बताया कि आजकल 1 जनवरी को जब नव वर्ष मनाया जाता है, तो उस दिन नवीनता का कोई सार्थक कारण दिखाई नही पड़ता। जनवरी की ठिठुरती सर्दियों को जब सारी प्रकृति सुप्त गुमसुम होती है, तब कैसा नव वर्ष…? इसके विपरीत चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पर नवीनता की छटा अपने आप ही प्रत्यक्ष हो जाती है एवं बसन्त ऋतु का मौसम होता है। प्रकृति का कण-कण नव उंमग, उल्लास और प्रेरणा के संग अंगड़ाई भर उठता है। कश्मीर से लेकर केरल तक उत्सवों के नगाड़े बज उठते है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी भारतीय नववर्ष अपना महत्व रखता है। ब्रह्मांड पुराण में वर्णन आता है कि यह वही दिन है जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि का सूत्रपात किया था। स्मृति कौस्तुभ के अनुसार इस घड़ी मे भगवान नारायण ने मतस्यावतार धारण किया था। यही वह शुभ दिवस था जब अयोध्या में भगवान श्री राम चन्द्र का राज्यभिषेक हुआ था। सिख इतिहास के द्वितीय पातशाही श्री गुरू अंगद देव जी व सिंध प्रान्त के सन्त सूलेलाल का भी प्रगटोत्सव इसी दिन मनाया जाता है। स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना भी इसी दिन की थी।
आगे साध्वी जी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि यदि हम व्यापारिक दृष्टि कोण से देखे तो हिसाब-किताब, सरकार का चालन-सचांलन शिक्षा सत्र आदि भी इसी वर्ष के अनुसार प्रारम्भ होता है इसलिए हमें चैत्र शुंक्ल प्रतिपदा को नववर्ष के तौर पर मनाने में आपत्ति नही होनी चाहिए। यह हमारी भारतीय संस्कृति का परिचायक है। आज हम पाश्चात्य संस्कृति में रंग चुके हैं और भारतीय संस्कृति से कोसो दूर होते जा रहे हैं। एक भारतीय होने के नाते हमारा कर्तव्य बनता है कि हम अपनी संस्कृति की रक्षा करें और यह तभी सम्भव होगा जब हमें अच्छे संस्कार मिलेगें। यह संस्कार हमें संतो महापुरुषों की शरण में जाकर ही प्राप्त हो सकते हैं। इस कार्यक्रम में आशुतोष महाराज जी के छात्र शिष्यों ने भारतीय संस्कृति को पुर्न जाग्रत करने के लिए लघु नाटक का मंचन किया एवं छात्रा शिष्याओं ने भारतीय संस्कृति से प्रेरित भजनों पर नृत्य को प्रस्तुत किया। कार्यक्रम को समापन की ओर ले जाते हुए संस्थान की चंडीगढ़ ब्रांच के संयोजक स्वामी गुरु कृपानंद जी ने उपस्थित सभी अतिथियों एवं भक्तजनों का धन्यवाद किया। अंत में आये हुए सभी भक्तजनों में भंडारे का वितरण किया गया।